कुछ ही सालों में कबड्डी पूरे महाराष्ट्र में प्रसिद्ध हो चुकी थी. साल 1923 में इसके नियमों को लेकर ऐतिहासिक कदम उठाये गए. जो भारतीय ओलपिंक संघ के नेतृत्व में हुए थे. इनके नियमों को गठन करके प्रकाशित किया गया था.
भारत ने विश्व स्तर पर कबड्डी में अपनी पहचान बर्लिन में खेले गए 1936 के ओलंपिक्स में हिस्सा लेकर हासिल की. इसका पूरा श्रेय ‘हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल’ को जाता है. उन्होंने भारत की तरफ से पहली बार इस खेल में अन्तराष्ट्रीय प्रदर्शन दिखाया था.
1950 में भारतीय कबड्डी महासंघ की स्थापना की गई. इस ‘इंडिया कबड्डी फेडरेशन’ (ए.आई. के. एफ.) के तहत कबड्डी के औपचारिक नियमों में सुधार किया गया. हालांकि 1972 के आसपास यह कबड्डी महासंघ ए.आई.के.एफ ‘द एमेच्योर कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (ए.के.एफ.आई) के नाम पर बदल गया था.
बहरहाल, 1952 के आसपास मद्रास में पहली बार पुरुषों की राष्ट्रीय प्रतियोगिता कराई गई. वहीं 1955 में महिलाओं की राष्ट्रीय प्रतियोगिता पहली बार कलकत्ता में हुई थी.
1980 में पहला एशियन कबड्डी चैंपियनशिप कलकत्ता में आयोजित किया गया. फ़ाइनल में भारत अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश को हराकर चैम्पियन बना था. दिलचस्प यह है कि इसकी लोकप्रियता के चलते बांग्लादेश ने कबड्डी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा दिया था.
1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में कबड्डी का भी प्रदर्शन किया गया. 1990 के बीजिंग में हुए एशियाई खेलों में भी कबड्डी को शामिल किया गया था. आज यह कबड्डी एशियाई देशों के अलावा अन्य कई देशों में खेला जाने वाला एक लोकप्रिय खेल बन चुका है.