महाराणा प्रताप 1540-1597 (मेवाड़ वंश- राजपूत शासक

मुग़ल काल में जब राजपुताना के दूसरे शासकों ने मुगलों से संधी कर ली थी तब मेवाड़ की भूमि पर जिस सूर्य का उदय हुआ उसका नाम था प्रताप.


माता से मेवाड़ी परंपरा और शौर्य की गाथा सुनकर प्रताप का मन बचपन से ही मातृभूमि की भक्ति में लग गया और उन्होने अपना जीवन राष्ट्र, कुल और धर्मं की रक्षा के लिए अर्पित कर दिया.


अकबर से हारने और जंगलों में भटकने के बाद भी उनका सहस नहीं टूटा और महाराणा ने चित्तौड़गढ़ वापस प्राप्त किया और राजपूतों की शान फिर से बढाई.


महाराणा ने प्रण लिया था कि जब तक वह चित्तौड़गढ़ वापस नहीं लेंगे तब तक ना पलंग पर सोयेंगे और ना सोने की थालियों में खायेंगे. उन्होने अपने कर्म के लिए राज्य सुख का उपभोग त्याग दिया था